दिगम्बर जैन धर्मावलम्बियों का 8 सितम्बर से चल रहा 10 दिवसीय महापर्व पर्युषण की समाप्ति क्षमावाणी पर्व के साथ हुई है. दसलक्षण पर्व का प्रारम्भ क्षमा धर्म की पूजा से हुई और आज क्षमावाणी पर्व के साथ समाप्त हुई. जैन समाज के एम पी जैन ने बताया की पूरे विश्व में सिर्फ जैन धर्म हीं ऐसा हैं जो क्षमा को पर्व की तरह मनाता है. आज मीठापुर सहित मुरादपुर, कमलदह जैन मंदिर अन्य सभी दिगम्बर जैन मन्दिरों क्षमावाणी की पूजा की गई.

मीठापुर दिगम्बर जैन मंदिर में क्षमावाणी पर भगवान् का 108 कलशों से अभिषेक किया गया. क्षमावाणी की शांतिधारा का सौभाग्य एम पी जैन को प्राप्त हुआ. मीठापुर दिगम्बर जैन मंदिर परिसर में अध्यक्ष विजय जैन कासलीवाल, प्रदीप बडजात्या, सुनील बडजात्या, राहुल कासलीवाल, ममता छाबडा, संदीप जैन, चंदा काला, ममता जैन बडजात्या, डॉ गीता जैन, संजय जैन, रिंकू जैन, अशोक छाबड़ा, रानी जैन, सरोज पाटनी, सोम कासलीवाल सहित सैकड़ों जैन श्रद्धालुओं ने पूरे साल में अपने द्वारा जाने या अनजाने में की गयी गलतियों के लिए एक दूसरे से क्षमा प्रार्थना किया तथा सभी ने एक दूसरे को क्षमा किया।. व्रत समाप्त किया जैन ने बताया की कई श्रावक एवं श्राविकाओं ने पूरे दसलक्षण दस दिनों का कठिन व्रत किया, कुछ ने तीन दिनों का व्रत किया. इस व्रत में पूरे दिनभर में एक बार एक ग्लास हल्का गर्म पानी पिया जाता है. सभी का आज सुबह मीठापुर मंदिर में व्रत समाप्त कराया गया.

एम पी जैन ने बताया कि भगवान महावीर ने कहा है की “क्षमा द्वारा क्रोध को शांत करें”: यह पर्व क्षमा के आदान-प्रदान का पर्व है। जैन धर्म न्याय व नीति का धर्म है। धर्म साधना की प्रक्रिया में क्षमा का महत्व स्थापन भगवान महावीर की एक महान देन है। उन्होंने सूत्र दिया, सब जीव मुझे क्षमा करें। मैं, सबको क्षमा करता हूँ। मेरी सर्व जीवों से मैत्री है। किसी से बैर नहीं। जैन ने बताया की क्षमा तीन प्रकार की होती है पहली आध्यात्मिक, दूसरी आगम की क्षमा और तीसरी लोक व्यवहारिक क्षमा होती हैं। प्रतिकूल परिस्थितियां निर्मित हो जाने पर भी रोष में न आना, क्रोध की जागृति न होना आध्यात्मिक क्षमा है। प्रतिकार की शक्ति होने के बाद भी बदले के कार्य न करना, किसी का बुरा न चाहना आगम की क्षमा है, और लोक व्यवहारिक क्षमा का शत्रु क्रोध है, आगम में कहा गया है कि पूजा पाठ, स्त्रोत, तप और ध्यान से बढ़कर क्षमा है। एम पी जैन ने बताया की क्रोध क्षमा को प्रगट नहीं होने देता। क्रोध के समान कोई पाप नहीं है, कोई शत्रु नहीं है और यह क्रोध ही विनाश की जड़ है। मनचाही वस्तु न मिलने पर, मनचाहा काम न होने पर व्यक्ति को क्रोध आ ही जाता है। जो पल-पल में क्रोध करते हैं, वो पग-पग पर अपने शत्रु तैयार कर लेते हैं। इस वजह से हर व्यक्ति को हमेशा क्रोध से बच कर रहना चाहिए।

उधर बिहार स्टेट दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमिटी के सचिव पराग जैन ने बताया कि सेठ सुदर्शन स्वामीजी की निर्वाण स्थली श्री कमलदहजी दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, गुलजारबाग तथा राजगीर, पावापुर, कुंडलपुर, चम्पापुर आदि स्थानों पर भी काफी अधिक संख्या में श्रद्धालुओं ने क्षमावाणी पर्व धूम धाम से मनाया तथा एक दूसरेसे अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी.
