पटना 26 सितम्बर 2024
कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार द्वारा राष्ट्रकवी रामधारी सिंह दिनकर जयंती के अवसर पर विजयद्र टांक के निर्देशन दिनकर कृत रश्मिरथी का मंचन किया गया। काला पदाधिकारी, दरभंगा चन्दन कुमार ने बताया कि मुख्य अतिथि जीवेश यादव, DDC दरभंगा, समारोह का उद्घाटन किया।
मंच पर प्रकाश आते ही कुंती की सामाजिक द्वंद की परकाष्ठा उभरने लगती है। सामाजिक बंधन और मजबूरियां अपने कलेजे के टुकड़ें को खुद से अलग करने पर विवश कर देता है। जो दानवीर कर्ण के रुप में अपनी ख्याति बनाता है। कुंती के किरदार निभाने दिल्ली से आयी अभिनेत्री लक्ष्मी मिश्रा किरदार के साथ न्यायसंगत दिखी और अपने अभिनय की बारीकियों से दर्शकों तक अपनी पीड़ा पहुंचाने में कामयाब रही। मंचीय प्रस्तुति में गायन मंडली की तान, मंच की आकृति व पात्रों के अभिनय ने कला -प्रेमियों को पूरे नाटक में बांधे रखा। नाटक अपने संवाद की अदायगी के साथ बढ़ता गया जो दर्शकों को अपनी ओर खींचता रहा। एक – एक कर जबरदस्त संवाद ने सभी को बांधे रखा। भगवान सभा को छोड़ चले, करके रण गर्जन घोर चले सामने कर्ण सकुचाया सा, आ मिला चकित भरमाया सा, हरि बड़े प्रेम से कर धर कर, ले चढ़े उसे अपने रथ पर रथ चला परस्पर बात चली – नाटक का संवाद दर्शकों को रामांचिक करता हैै।
कुछ ऐसी ही गर्जन और ध्वनि करतालों के बीच नाटक रश्मिरथी का मंचन दरभंगा के लहेरिया सराय के प्रेक्षगृह – सह – आर्टगैलरी में प्रवीण सांस्कृतिक मंच की ओर से कला संस्कृति एवं युवा विभाग के सौजन्य से दूसरी प्रस्तुति के तौर पर की गयी। जिसका निर्देशन वरिष्ठ रंग – निर्देशक रंगकर्मी विज्येंद्र कुमार टाक ने किया था। उच्च श्रेणी की मंच सज्जा व उन्नत संगीत की लय के बीच प्रकाश व्यवस्था नाटक को मंचीय परिवेश में जीवंत व रोचक बना रहा था। खासकर कर्ण का किरदान निभाने मुंबई से आये वरिष्ठ रंगकर्मी हेमंत माहौर के अभिनय की दक्षता ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। नाटक के प्रायः सभी पात्र मृत्युंजय , मनीष, जहांगीर, स्पर्श, सौरव, राहुल ने वीर रस में संवाद अदायगी कर अपने किरदार को स्थापित करने में कामयाबी हासिल की। कृष्ण की भूमिका निभाने वाले डॉ कुमार विमलेंदु की उच्च श्रेणी की काबिलियत दर्शकों के दिल पर छाप छोड़ने में कामयाब रहा।
रश्मिरथी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी का खंड काव्य है। जिसमें महाभारत का अनुपम दानी कर्ण का चित्रण मिलता है। रश्मिरथी का अर्थ होता है ,सूर्य की किरणों का रथ। सूर्य के बेटे कुंती पुत्र महारथी कर्ण का यशोगान करना ही काव्य का उद्देश्य है। कर्ण की कथा की पृष्टभूमि में वह अपनी माँ से ठुकराया हुआ पात्र है। कर्ण की माँ कुमारी थी तब कर्ण का जन्म हुआ। लोक मर्यादा की रक्षा के लिए कुंती ने अपने नवजात शिशु को एक मंजूषा में बंद करके नदी में बहा दिया। वह मंजूषा अधिरथ नाम के सूत को मिली। अधिरथ संतान भाग्य से वंचित था। मंजूषा में कर्ण-कुंडल से युक्त तेजोमय शिशु को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो गया। अधिरथ और उनकी पत्नी राधा दोनों अति प्यार से बच्चे को लालन-पालन करने लगे। बच्चे का नाम कर्ण पड़ा। राधा के पालित होने से कर्ण का दूसरा नाम पड़ा राधेय। कथा अति प्राचीन काल की है। हस्तिनापुर का प्रतापी राजा ययाति था। उनके बाद उनका छोटा पुत्र पुरु राजा बना। पुरु वंश में भरत हुए आगे इसी वंश में कुरु पैदा हुए। उनके नाम से उनके वंशज कौरव कहलाए गए। द्वापर युग के अंत में महात्मा शांतनु का जन्म हुआ। शांतनु और गंगा की शादी हुई। शांतनु का पुत्र था देवव्रत। कुंती को विवाह के पहले ही कर्ण का जन्म हुआ। कुंती ने लोक लज्जा से बचने शिशु को एक मंजूषा में बंद करके नदी में बहा दिया। वही रश्मिरथी का नायक कर्ण है ।
पांडू ऋषी के शाप के कारण स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकते। पांडू ने कुंती से संतानोत्पत्ति के लिए आग्रह किया। कुंती को शादी के पहले ही एक मन्त्र मालूम था, जिसके बल अविवाहिता को कर्ण का जन्म हुआ। अब उसी मन्त्र से धर्मराज को बुलाया और युधिष्ठिर का जन्म हुआ। पवन देव से भीम और इंद्र से अर्जुन का जन्म हुआ। माद्री के गर्भ से अश्विनी कुमारों की दया से दो पुत्र हुए -नकुल और सहदेव पांडू के निधन होते ही कुंती ने पाँचों पुत्रों का पालन पोषण किया।
धृतराष्ट्र के सौ पुत्र हुए। बचपन से ही पांडू पुत्र और धृतराष्ट्र के पुत्रों में द्वेष भाव और दुश्मनी थी। धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्याेधन था। युधिष्ठिर ने आधा राज्य माँगा तो दुर्याेधन ने नहीं कह दिया। कृष्ण दूत बनकर गये तो दुर्याेधन ने कहा –हे कृष्ण सुई के नूक बराबर की भूमि भी पांडवों के लिए नहीं दूँगा। अब पांडव युद्ध करने विवश हो गए। रश्मिरथी का उद्देश्य कर्ण की कीर्ति दर्शाना है। इसमें दिनकर जी को पूरी सफलता मिली है। नाटक के कई संवाद ज्वलंत सवाल खड़े करते हैैं। जिनमें ऊँच नीच का भेद न माने ,वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया -धर्म जिसमें हो ,सबसे वही पूज्य प्राणी है।
महाभारत का युद्ध धर्मयुद्ध था या नहीं, उपंसहार यह निकलता है कि कोई भी युद्ध धर्मयुद्ध नहीं हो सकता। इस नाटक की सफलता का पूरा श्रेय इस नाटक के निर्देशक विज्येंद्र टॉक को जाता है।