नई दिल्ली, 17 दिसंबर 2024
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ बिल पेश किया। इस विधेयक को लोकसभा ने 269 वोट से स्वीकार कर लिया है जबकि विरोध में 198 वोट पड़े हैं। यह बिल देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से संबंधित है। विपक्ष इस बिल का यह कहकर विरोध कर रहा है कि इससे देश के संघीय ढांचे को नुकसान होगा और क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

बताते चलें कि वन नेशन, वन इलेक्शन का वादा बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया था। कांग्रेस सहित लगभग अन्य सभी विपक्षी पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। आजादी के बाद से भारत में 400 से ज्यादा चुनाव हो चुके हैं जिनमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव शामिल हैं। वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव का विपक्ष भले ही विरोध कर रहा हो, लेकिन यह प्रस्ताव भारत के लिए नया नहीं है। आजादी के बाद जब देश में पहली बार 1952 में चुनाव हुए थे तो वे इसी तरह हुए थे। उसके बाद 1957 में भी चुनाव वन नेशन, वन इलेक्शन के तर्ज पर ही हुए थे। वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति सितंबर 2023 में गठित की गई थी, जिसने इस प्रस्ताव पर विचार के लिए रिसर्च किया और अपनी रिपोर्ट मार्च 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी। कोविंद समिति की रिपोर्ट में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराए जाने की सिफारिश की गई है। एक देश, एक चुनाव बिल पेश होने के बाद सांसदों को इस पर बोलने का समय दिया गया। कई पार्टियों की आपत्ति के बाद बिल को दोबारा पेश करने को लेकर वोटिंग हुई। ज्यादा वोट पड़ने के बाद बिल पेश किया गया।

अमित शाह ने सदन में कहा कि बिल जब कैबिनेट में आया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजना चाहिए। कानून मंत्री ऐसा प्रस्ताव कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्षधर रहे हैं । इससे पहले भी बीजेपी सरकार ने इसके पक्ष में अपनी राय रखी है । 2003 में अटल बिहारी वाजेपी की सरकार के वक्त भी इसपर चर्चा हुई थी और अटल बिहारी वाजपेयी इसे लागू करवाना चाहते थे।

वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में तर्क हैं।
देश में एक साथ चुनाव होने से खर्च कम होगा, अन्यथा हमेशा देश में चुनाव होते रहते हैं और हर बार चुनाव पर खर्च करना पड़ता है। राजनीतिक दलों को भी कम खर्च करना पड़ेगा।
देश में कई बार चुनाव होने से अनिश्चितता की स्थिति बनती है और व्यापार एवं निवेश प्रभावित होता है.।
बार-बार चुनाव होने से सरकारी मशीनरी प्रभावित होती है, जिससे नागरिकों को असुविधा होती है.।
सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनाव ड्यूटी देने से उनपर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
आचार संहिता लागू होने से कई बार कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में देरी होती है, जिसकी वजह से विकास कार्यों पर असर पड़ता है।
बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं का उत्साह कम हो जाता है और वे वोटिंग में रुचि नहीं लेते हैं।
हालाँकि अधिकतर विपक्षी पार्टियां वन नेशन, वन इलेक्शन बिल का विरोध कर रही हैं। जानकारों का कहना है कि वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को लागू करने में कई चुनौतियां हैं, जिनपर विचार करने की जरूरत है और संभावना जताई जा रही है कि सरकार इसके लिए बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजेगी ।