औरंगाबाद 11 अप्रैल 2024
अल्प दृष्टि की मार झेल चुका जिला औरंगाबाद में जल संकट सदी की गहरी त्रासदी बनकर उभर रही है। जल के बिना जीवन को बचाना मुश्किल है। गर्मी की शुरुआत के साथ ही जिले से लेकर गांवों में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। लोग प्रदूषणयुक्त कार्य शैली से अलग नहीं हो पा रहे हैं। सरकार व सामाजिक संस्थाओं के चेतावनी असर दिखाई नहीं दे रहा है। प्रखंड स्तर पर जल संचय की योजनाएं धरातलीय आकार पाने में अक्षम दिख रही है। यह समस्या क्षेत्रीय नहीं अपितु विश्व समुदाय के लिए खतरे का शंखनाद है।
आज तीसरी दुनियां के अधिकांश देश इस संकट के साक्षी बन चुके हैं। पूरे विश्व के 70 प्रतिशत भाग में जल है पर पीने योग्य मीठा जल केवल 3 प्रतिशत है। शायद ही हम जान पाते हैं कि वही 70 प्रतिशत जल पृथ्वी पर सामान्यतया विभिन्न जलस्त्रोतों में चक्कर लगाते रहता है। जलचक्र को समझें तो मीठे जल के 52 प्रतिशत झील और तालाब में, 38 प्रतिशत मृदा में, 8 प्रतिशत वाष्प में तथा एक प्रतिशत नदी एवं एक प्रतिशत वनस्पति में निहित है। जल संकट के कारण व निदान के रास्ते पर जीवों को जल मिलता है। आर्थिक विकास, औद्योगीकरण एवं जनसंख्या विस्फोट से जल की खपत बढ़ गई है। खपत के आधार पर प्रदूषण ने जगह बना ली है। यही कारण है कि जल चक्र असामान्य हो चुका है। भारत में कई नदियां असमय सूख रही हैं। कुआं व तालाब पुरानी बात हो चुकी है। खुले में शौच जाना, कूड़े कचड़े का ढेर, प्लास्टिक वस्तुओं के कचड़े तथा औद्योगिक जगत से निकली गंदगी व कचड़ा यह सब धरती पर जीव के लिए भीषण खतरे को बुलावा देने में लगा है। सूखी पड़ी हैं प्रमुख नदियां जल संकट का असर हर जगह देखने को मिल रहा है। कुटुंबा प्रखंड के मुख्यालय अंबा के दोनों ओर से बतरे व बटाने नदी का बहाव पूरे वर्ष में कभी कम नहीं होता था। दस वर्ष के अंतराल में यह देखा गया कि अब सावन के बाद नदी में पानी नहीं रहता है। नदियां सूखी पड़ी है। गर्मी के मौसम में नदियों में पानी नहीं रहता है जबकि पहले सालो भर पानी रहता था। गांवों में तालाब सूखे पड़े हैं। जल स्तर नीचे चले जाने से चापाकल सूख गए हैं। खासकर दक्षिण, पश्चिम और पूर्वी भाग के गांव गर्मी की शुरुआत से ही जल संकट से घिरा है। पटवन के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले पंप सेट भी फेल हो चुका है। इसके बावजूद सरकार की कुंभकरनी नींद से कब जागेगी यह भी सोच से परे है।