पटना 01 अक्टूबर 2024
आलेख : कमल किशोर
‘स्वच्छ भारत मिशन’ से ‘स्वच्छता ही सेवा’ तक तथा ‘संपूर्ण स्वच्छता’ से ‘स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता’ तक का सफर एक ऐसे असंभव से लगने वाले लक्ष्य की प्राप्ति के एक दशक लंबे सफर की कामयाबी का जश्न है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत भागीदारी और नेतृत्व ने बेहद प्रभावशाली और संसाधन युक्त बना दिया है ।
इन प्रयासों की विशालता का अंदाज केवल इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब स्वच्छता अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी तब यानी वर्ष 2014 तक केवल 39 प्रतिशत लोगों तक ही सुरक्षित स्वच्छता वाली सुविधाओं की पहुंच थी लेकिन स्वच्छता अभियान ने इतना तीव्र बदलाव लाया है कि मात्र एक दशक में भारत के स्वच्छता परिदृश्य को एक नया स्वरूप मिल चुका है । अब 73 प्रतिशत कचरे को परिष्कृत किया जा रहा है और 4,000 शहरों में 97 प्रतिशत तक कचरा संग्रह हो रहा है और 2021 से 427 कचरा स्थलों की सफाई की गई है। आज की तारीख में लगभग 2 लाख 92 हज़ार ओडीएफ प्लस मॉडल गाँव हैं, जो भारत के ग्रामीण गाँवों का 50 प्रतिशत से अधिक है । इसमें 5 लाख 53 हज़ार से अधिक ओडीएफ प्लस गाँव, साढ़े 3 लाख से अधिक अपशिष्ट संग्रह और पृथक्करण शेड और अब तक बनाए गए 11 करोड़ 60 लाख से अधिक शौचालय शामिल हैं। स्वच्छ भारत मिशन ने टिकाऊ स्वच्छता समाधानों पर जोर दिया जिसकी वजह से स्वच्छता की स्थिति में सुधार आया।
इस मिशन की सफलता के पीछे राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति एक बहुत बड़ा कारण थी। इसी का नतीजा रहा कि सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के पहले 5 वर्षों के दौरान 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के बजटीय परिव्यय की तुलना में 2020-2025 की अवधि के लिए 1 लाख 40 हज़ार करोड़ रुपये का बजटीय परिव्यय आवंटित किया है। यानी इस अभियान को संसाधनों की कमी न रही । आज इस बेहद महत्वाकांक्षी अभियान की विश्व स्तर पर सराहना हो रही है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस अभियान की तारीफ करते हुए कहा था कि विभिन्न देश किस तरह से स्वच्छता सेवाएं सभी को मुहैया करा सकते हैं, ‘स्वच्छ भारत’ अभियान इसका एक अच्छा उदाहरण है। इसी तरह यूनिसेफ ने स्वच्छ भारत अभियान की स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़ी योजनाओं की तारीफ की है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्वच्छ भारत अभियान के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा 24 सितम्बर 2019 को “ग्लोबल गोलकीपर” पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
2 अक्टूबर 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) ने भारत में शहरी और ग्रामीण स्वच्छता और सफाई में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। 100% खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) स्थिति प्राप्त करने , वैज्ञानिक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) सुनिश्चित करने और ” जन आंदोलन ” (लोगों के आंदोलन) के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन को आगे बढ़ाने पर केंद्रित प्रयासों का दूरगामी प्रभाव पड़ा है। इस अभियान के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि यह उस विषय पर चिंता जाहिर करता था जिसे लेकर समाज में एक खास तरह की उदासीनता थी । लोग सदियों से खुले में शौच करते आ रहे थे और तमाम स्वास्थ्य सम्बन्धी बहसों के बावजूद इसे बिलकुल सामान्य माना जाता था । शहरों से गाँव तक सफाई का एक प्रभावकारी तंत्र न था और लोग सफाई को लेकर जरा भी सजग न थे. लेकिन जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छता को लेकर इस संघर्ष की शुरुआत की तो इसके लक्ष्य बेहद महत्वाकांक्षी माने गए जिसके लिए प्रचुर संसाधनों की जरुरत थी जो आज से १० वर्ष पूर्व असम्भव सा लग रहा था लेकिन जब प्रधानमंत्री ने अपनी व्यक्तिगत रूचि इसमें दिखाई तो संसाधनों की कमी कोई मुद्दा ही नहीं रह गया । हमने पाया कि केन्द्रीय बज़ट में स्वच्छता को लेकर लगातार प्रभावी प्रावधान किये गए । हमने पाया कि सार्वभौमिक स्वच्छता सरकार के विकास एजेंडे में सबसे ऊपर है।
सबसे महत्वपूर्ण बात ये रही कि इस अभियान में आम लोगों की भागीदारी प्रारंभ से ही बनाये रखने की कोशिश की गयी और इसे प्रधानमंत्री ने सरकारी कार्यक्रम से ज्यादा जन अभियान का स्वरूप देने में कामयाबी हासिल की । इसका नतीजा ये भी निकला कि स्वच्छता के बुनियादी कार्यक्रम और आधारभूत संरचनात्मक विकास तो चलता ही रहा , आम जनता को स्वच्छता के प्रति जागरूक और सजग करने का कार्य भी सहजता से अंजाम दिया गया ।इस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान एक परिवर्तनकारी पहल रही जिसने भारत में स्वच्छता में क्रांति ला दी है जिससे व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हुए हैं। करोड़ों शौचालय उपलब्ध कराकर, शिशु मृत्यु दर को कम करके और महिलाओं की सुरक्षा में सुधार करके, इस अभियान ने भारतीयों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि 2014 की तुलना में 2019 में डायरिया से 3 लाख कम मौतें हुई जिसका सीधा सम्बन्ध स्वच्छता से रहा।
‘स्वभाव स्वच्छता, संस्कार स्वच्छता’ का उद्देश्य पूरे भारत में स्वच्छता के लिए सामूहिक कार्रवाई और नागरिक भागीदारी की भावना को फिर से जगाना है जिसमें ‘संपूर्ण समाज दृष्टिकोण’ के अंतर्गत तीन प्रमुख स्तंभों पर ध्यान केंद्रित किया गया है । इनमें स्वच्छता लक्ष्य इकाइयाँ (सीटीयू) ( इसके तहत श्रमदान गतिविधियाँ जिनका उद्देश्य लक्ष्य इकाइयों और सामान्य स्वच्छता का समयबद्ध परिवर्तन करना है, स्वच्छता में जन भागीदारी, जागरूकता और समर्थन को बढ़ावा देना तथा सफाई मित्र सुरक्षा शिविर यानी इलाज स्वास्थ्य जाँच आयोजित करना और सफाई कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना भी शामिल है । ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सफाई गतिविधियाँ, नागरिकों और साझेदारो की व्यापक भागीदारी के साथ, सी.टी.यू. के रूप में पहचाने गए चुनौतीपूर्ण कचरा स्थलों पर ध्यान केंद्रित करना, स्वास्थ्य जांच, सुरक्षा गियर वितरण और सामाजिक कल्याण योजनाओं तक पहुँच के माध्यम से सफाई कर्मचारियों का समर्थन करने वाले शिविर, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, कलात्मक ‘अपशिष्ट से कला’ कार्यक्रमो और स्वच्छ खाद्य गलियाँ के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता , स्वच्छता के लिए स्वामित्व और जिम्मेदारी को बढ़ाने के लिए रैलियों, मैराथन और सामुदायिक चर्चाओं के माध्यम से नागरिकों को संगठित करना इसके प्रमुख आयामों में शामिल है । इसके साथ ही स्थायी व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने, दैनिक आदतों में स्वच्छता को एकीकृत करने और स्वच्छ तथा स्वस्थ वातावरण बनाए रखने में सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में बदलाव को प्रेरित करना भी इसका एक बड़ा लक्ष्य है ।
यह बात भी सही है कि स्वच्छता को लेकर अभी कई चुनौतियाँ बाकी हैं मसलन शौचालय के लिये बुनियादी ढाँचे महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन ये अकेले ही रोगजनकों के मल-मौखिक संचरण को रोकने के लिए पूर्व-आवश्यकता के रूप में काम नहीं आ सकते। ग्रामीण क्षेत्रों में जल की आपूर्ति की कमी एक प्रमुख मुद्दा है, जिससे शौचालय के गैर-उपयोग की दर बढ़ जाती है। शैक्षणिक संस्थानों, बाल देखभाल केंद्रों, अस्पतालों एवं अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों को स्वच्छता अभ्यासों में और प्रगति की आवश्यकता है। इसके साथ ही स्वच्छता को लेकर लोक व्यवहार में बड़े बदलाव की जरुरत अभी भी बनी हुई है ।
पेयजल और स्वच्छता विभाग ने इसीलिए सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 4.9 लाख स्वच्छता में भागीदारी कार्यक्रमों और 3.74 लाख सीटीयू और 61,638 सफाई मित्र सुरक्षा शिविरों के साथ 9.2 लाख से अधिक ग्रामीण कार्यक्रमों की योजना बनाई है। ‘स्वच्छता ही सेवा’ अभियान में पुराने अनुभवों के आधार पर कुछ नए और अनोखे प्रयास शामिल किये गए हैं । दरअसल यह अभियान स्वच्छता लक्ष्य इकाइयों (सीटीयू) पर केंद्रित है, जो मैपिंग पोर्टल के माध्यम से अब तक पहचाने गए भारत भर में 6 लाख से अधिक दुर्गम और गंदे स्थानों को बदल देगा। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू), उद्योग भागीदारों और गैर सरकारी संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों को समयबद्ध उपचार और स्वच्छता प्रयासों के लिए इन सीटीयू को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। स्वच्छता में जन भागीदारी के थीम के तहत मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों में 6.5 लाख से अधिक कार्यक्रम निर्धारित किए गए हैं। इन आयोजनों का उद्देश्य शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को सार्थक जागरूकता और जनभागीदारी गतिविधियों में शामिल करना है। नागरिकों, उद्योगों, शहरी स्थानीय निकायों, गैर सरकारी संगठनों, पंचायतों और विभिन्न अन्य हितधारकों को एक साथ लाते हुए, इस वर्ष के अभियान का आधार ‘संपूर्ण समाज दृष्टिकोण’ है। यह सहयोगात्मक प्रयास यह सुनिश्चित करता है कि भारत का हर कोना एसएचएस आंदोलन से प्रभावित हो। इस दौरान 80,000 से अधिक शिविर सफाई कर्मचारियों को स्वास्थ्य जांच, सुरक्षा गियर और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुंच प्रदान किया जाना है जिससे इस प्रक्रिया में उनका कल्याण और सुरक्षा सुनिश्चित हो।
इस अभियान की इसी व्यापकता को देखते हुए कहा जा रहा है कि स्वच्छ भारत मिशन व्यवहार परिवर्तन के लिए एक जन आंदोलन बन गया है और है । अब विश्व स्तर पर शिशु मृत्यु दर को कम करने, बीमारी को रोकने और आजीविका बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली हस्तक्षेप के रूप में मान्य है। 2014 में शुरुआत के बाद से एसबीएम ने स्वच्छता और स्वच्छ पानी तक पहुंच में तेज़ी से सुधार किया है, अब तक 11.6 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण करके यह सुनिश्चित किया गया है कि भारत खुले में शौच से मुक्त रहे। इस ओडीएफ स्थिरता, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्था के प्रावधान और भारत के गांवों में दृश्यमान स्वच्छता पर ज़ोर देने के साथ कार्यक्रम को दूसरे चरण में आगे बढ़ाया गया है। यह राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रयासों का नतीजा है कि आज की तारीख में भारत के 50% गांव ओडीएफ प्लस मॉडल हैं ।
इस प्रकार एसएचएस अभियान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के 10 साल पूरे होने का प्रतीक है, जो हमेशा पूरे देश को इस उद्देश्य में एक साथ लाने में प्रेरणादायक रहा है। इसने यह तथ्य स्थापित किया है कि स्वच्छता किसी एक इकाई की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक संस्थान का सामूहिक कर्तव्य है। इस दृष्टिकोण के माध्यम से हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि स्वभाव स्वच्छता राष्ट्रीय लोकाचार का हिस्सा बन जाए, एक ऐसा मूल्य जो हमारे जीवन जीने में अंतर्निहित है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )