पटना 05 नवम्बर 2024

छठ पूजा का व्रत बहुत पवित्र और कठिन माना जाता है। लोक मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने वाली महिलाओं पर सूर्य देव और छठी मैया की असीम कृपा होती है।कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व मनाए जाने का विधान है। ये चार दिवसीय पर्व मुख्य रूप से बिहार में मनाया जाता है।इसके अलावा यह पर्व झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में भी मनाया जाता है। हालाँकि अब छठ महापर्व देश के कई महानगरों और बड़े शहरों में भी मनाया जाने लगा है। इस पूजा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस पर्व में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

छठ पूजा, सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित एक त्योहार है. इसे मनाने के पीछे कई कारण हैं: मान्यता है कि छठी मैया को संतान की देवी माना जाता है. इस व्रत से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है और छठी मैया निसंतानों को संतान सुख का वरदान देती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार , त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी छठ का व्रत रखा था। एक कथा के अनुसार, माता सीता ने मुंगेर में छठ पर्व मनाया था। इसके बाद ही छठ महापर्व की शुरुआत हुई। मुंगेर सीता मनपत्थर (सीता चरण) सीताचरण मंदिर के लिए जाना जाता है, जो मुंगेर में गंगा के बीच में एक शिलाखंड पर स्थित है। रामायण से जुडी एक और कथा प्रचलित है । एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
छठ पूजा के दौरान, भक्त भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, जिन्हें ब्रह्मांड के निर्माता और पृथ्वी पर जीवन के आरंभकर्ता के रूप में सम्मानित किया जाता है।छठ में भले सूर्य देवता की पूजा होती हो लेकिन छठ पर्व को मैया कहकर संबोधित किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार षष्ठी देवी को लोकभाषा में छठ माता कहा जाता है, जो ऋषि कश्यप तथा अदिति की मानस पुत्री हैं। इन्हें देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। मां देवसेना भगवान सूर्य की बहन तथा भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं। देवासुर संग्राम में देवताओं की मदद के लिए जब इन्होंने असुरों का संहार किया, तो इन्हें देवसेना कहा गया। देवसेना के बारे में कहा जाता है कि वो नवजात शिशुओं के जन्मकाल से लेकर अगले 6 दिनों तक उनके पास रहकर उनकी रक्षा करती हैं। छठ एक बहुत ही महिमामयी पर्व है और कई पुराणों और वेद में इसका जिक्र मिलता है। इससे जुड़ी कई पैराणिक कथाएं हैं।

छठ व्रत से जुड़ी पैराणिक कथाएं
उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है।छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सर्वप्रथम पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर संपन्न किया था, जिसके बाद महापर्व की शुरुआत हुई। छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है। यह पर्व बिहार के साथ देश के अन्य राज्यों में भी बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
छठ मइया की महिमा

पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी संतान सुख से वंचित थे। इस बात से राजा-रानी काफी दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। महर्षि ने यज्ञ संपन्न करने के बाद मालिनी को खीर दी। खीर का सेवन करने के बाद मालिनी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन दुर्भाग्य से उसका पुत्र मृत पैदा हुआ। ये देखकर राजा-रानी बहुत दुखी हो गए और निराशा की वजह से राजा ने आत्महत्या करने का मन बना लिया। परंतु जैसे ही राजा आत्महत्या करने लगे तो उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होने कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं और मैं लोगों को पुत्र सुख प्रदान करती हूं। जो व्यक्ति सच्चे मन से मेरी पूजा करता है उसकी मैं सभी मनोकामना पूर्ण करती हूं। यदि राजन तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान दूंगी। देवी के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी की पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप रानी मालिनी एक बार फिर से गर्भवती हुई और ठीक 9 महीने बाद उन्हें एक संदुर पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं तभी से छठ पर्व मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई।

एक कथा के अनुसार, ऋषि अर्क को स्वयं आकाशवाणी से इस महान पर्व को करने की प्रेरणा मिली थी। वे कुष्ठ रोग से बुरी तरह से पीड़ित थे और पीड़ा के कारण अपना शरीर तक त्यागना चाहते थे। तभी आकाशवाणी हुई और उन्हें छठ महापर्व के व्रत की महिमा पता चली। फिर उन्होंने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ यह पर्व किया, जिसके बाद वो इस त्वचा रोग से मुक्त हो गए।

एक और कथा के अनुसार, प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया अपनी पुत्री की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी।

छठ महापर्व में छठ व्रती 36 घंटों तक निर्जला उपवास रखते हैं और घंटो पानी में खड़े रहकर भगवन सूर्य की उपासना करते हैं। सूर्य उपासना को लेकर एक कथा प्रचलित है। मान्यता है की महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की थी और कहा जाता है कि घंटों पानी में खड़े होकर कर्ण सूर्य देव को अर्घ्य देता था। सूर्य देव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा चली आ रही है।
छठ महापर्व का पहले दिन नहाय खाय ,दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या प्रहार अस्ताचल सूर्य को पहला अर्ध्य और चौथे उदीयमान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।

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