पटना 15 नवंबर 2024
शुक्रवार 15 नवम्बर 2024 को रंगसृष्टि, पटना अपने वार्षिक नाट्य महोत्सव के अंतर्गत “अपना महोत्सव – 2024” का आयोजन कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के सहयोग से किया जा रहा है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य बिहार की बोलियों, भाषाओं एवं लोक संस्कृति को लोगों के जीवन में बनाए व बचाए रखना है। यह नाट्य महोत्सव कई लोक विद्याओं का रंग संगम है जो तीन दिवसीय लोक नाट्य महोत्सव के रूप में आज जनता के बीच में है।
“अपना महोत्सव 2024” के द्वितीय दिन तीन कार्यक्रमों को प्रेमचंद रंगशाला के वाड्य परिसर में किया गया – प्रथम “नाट्य शिक्षक की बहाली” नुक्कड नाटक की प्रस्तुति लोक पंच, पटना के द्वारा किया गया इस नाटक में कलाकारों का दर्द सरकार को बताया गया और कहा गया कि और सब तो अच्छे कार्य हो रहे हैं तो कलाकारों को भी नाट्य शिक्षक के माध्यम से बहाल किया जा सके। इस नाटक के निर्देशक मनीष महिवाल है। द्वितीय “लोक गायन” की प्रस्तुति साक्षी पाण्डेय एवं साथी कलाकारों ने दिया। तृतीय “लोक गायन” की प्रस्तुति अयोध्या यादव एवं साथी कलाकारों ने दिया।
द्वितीय दिन मंचीय प्रस्तुति में नाट्य संस्था “अनुपम सेवा समिति, बखरी, बेगुसराय की प्रस्तुति लोक नाटक “बहुरा गोडिन” का मंचन पवन पासवान के निर्देशन में किया गया।
रंगसृष्टि ने अपने नाट्य महोत्व में यह हमेंशा प्रयास किया है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच कर उन्हें रंग गतिविधियों से जोडे। सुदूर गांव में जो संस्थाऐं कार्य कर रही है उन्हें मुख्य धारा से जोडा जा सके ताकि हम ग्रामीण रंगमंच को तथा ग्रामीण कलाकार नागरीय रंगमंच को समझ सके और अपना विकास कर सके। साथ ही साथ जनता को उत्कृष्ट अभिनय एवं नाटक से परिचित करा सकें। अच्छे विचारों से जनता में सद्भाव एवं एकता का संचार किया जा सके।
बहुरा गोडिन – नटुआ दयाल सिंह बिहार की एक चार सौ पचास वर्ष पुरानी लोककथा है जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार कमला नदी को अपना मार्ग बदलने के लिए बाध्य किया गया ताकि वह बखरी गांव से होकर गंगा नदी से मिल जाए। बखरी गांव के बिसंभर राम और राजभौरा गांव के दुखरन सहनी व्यापारी थे जो मंडी में मिले और अच्छे मित्र बन गए। उन्होंने अपने बच्चों के विवाह के माध्यम से अपने रिश्ते को मजबूत करने की इच्छा व्यक्त की। इसके तुरंत बाद बिसंभर को एक पुत्र दयाल और दुखरन को एक पुत्री अमरोती का जन्म हुआ। जब तक बच्चे विवाह योग्य हुए, बिसंभर और दुखरन दोनों ही मर चुके थे। बिसंभर के भाई भीमल ने अपने भाई की इच्छा का सम्मान करना चाहा और दुखरन की विधवा बहुरा के पास विवाह का प्रस्ताव रखा, जो विवाह कराने के लिए सहमत हो गई, लेकिन एक शर्त रखी, लेकिन उस पर कुछ नहीं किया। इसके बजाय वह अपने बारातियों के साथ शादी के लिए बकरी पहुंचा।
बहुरा ने शादी के जुलूस को रोक दिया और उनसे कहा कि शर्त पूरी नहीं होने के कारण शादी नहीं हो सकती। ग्रामीणों के दबाव में बहुरा को बारात को विवाह स्थल पर जाने की अनुमति देने के लिए मजबूर होना पड़ा। काले जादू में विशेषज्ञ बहुरा ने बारातियों को पक्षी बनाकर और उन्हें मारकर अपना बदला लिया। हालांकि भ्रम माल और दयाल बच गए, लेकिन भीम माल बहुरा के काले जादू से भ्रमित हो गया। तब तक विवाह संपन्न हो चुका था। दयाल मोइरांम बंगाल में काम करने चला गया और जादूगर हिरिया झिरिया के संपर्क में आया, जिसने उसे बहुरा की शक्तियों का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त जादू सिखाया।
दयाल अपनी पत्नी को लाने के लिए बकरी लौटा, लेकिन बहुरो ने एक बार फिर उसे शादी की शर्त याद दिला दी। बकरी के शासक, जेंट सेन मान सेन ने दयाल से खुद को समझाने के लिए कहा। दयाल ने अपने नृत्य से शासक को मंत्रमुग्ध कर दिया और इनाम के तौर पर उसकी पत्नी मांगी। टेंट सेन ने विवाद में हस्तक्षेप किया और बहुरा और दयाल दोनों ने अपने वादों का सम्मान करने के लिए सहमति व्यक्त की। जैसा कि ज्यादातर लोक कथाओं में होता है, कहानी एक सुखद अंत के साथ समाप्त होती है, जिसमें बारातियों को वापस जीवित कर दिया जाता है और दयाल अपनी दुल्हन के साथ राजभोरा लौट आता है। इस प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा।
इस नाटक में भाग लेने वाले कलाकार
हारमोनियम – पवन पासवान, ढोलक मनोज शर्मा, नक्कारा- रंजीत राम, मंजीराराम बिलाश यादव, अन्य बहु- सत्यनारायण पासवान, नटुआ दयाल सिंह सरोज पासवान, बिमल साहनी महेश्वर साहनी, महतो गौतम पासवान, धारीदार – गुड्डू राम, झीमल नंदन साहनी, माँ कमला ब्रह्मदेव पासवान, अमरावती मनोज दास, भागेमती – बिनोद कुमार, बहुरा मां – राम सबक दस, हिरीमा मालीन – मो० इसराफिल, झिरीमा मालीन – रमेश मुखिया, पतोहू (जसोमति) – सुलन पासवान, अन्य ग्रामीण – पिंटू राम, रौशन कुमार पासवान