पटना 03 अक्टूबर 2024
गुरुवार को बिहार विद्यापीठ,इप्टा,और लोक परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में विज्ञान और मिथ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता विजय प्रकाश अध्यक्ष बिहार विद्यापीठ ने किया।मुख्य वक्ता डॉ गौहर रजा ने विज्ञान और मिथ पर सांगोपांग प्रकाश डालते हुए विज्ञान और मिथ की अवधारणा स्पष्ट किया। विभिन्न सभ्यताओं,और संस्कृतियों का हवाला देते हुए कहा कि धर्म और विज्ञान दोनों में अंतर है और दोनो की दिशाएं भी अलग अलग है। विज्ञान अनवरत खोज पर आधारित है।उसमें प्रश्न पूछने की आजादी है। विज्ञान पूर्ववर्ती अनुसंधान को खारिज भी करती है तो उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है,वर्ण यह स्वागत योग्य माना जाता है।ऐसा करने वाले को प्रोत्साहित और पुरस्कृत भी किया जाता है किन्तु, धर्म की एक सीमा है, जिसमें प्रश्न कर्ता क्यों से शुरू करता है और उसके प्रश्न करने की एक सीमा होती है, जहां उसे रुकना पड़ता है और अन्ततः धर्मग्रंथों और गुरु की बातों को स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। यदि ऐसी स्वीकारोक्ति के बजाय उसका विरोध सोतों उसे केवल अमान्य ही नहीं किया जाता वरण उसकी प्रतिक्रिया भी होती है। अपने इस वक्तव्य का तथ्यपूर्ण विश्लेषण उन्होंने विभिन्न धर्मों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इस बात की पुष्टि की।
विजय प्रकाश भा प्र से सेनि ने अपने अध्यक्षीय भाषण में विद्वान वक्ता की प्रस्तुति की सराहना की। लोकतंत्र संवाद की दूसरी श्रृंखला में उनके वक्तव्य को विचार प्रेरक बताया और इससे उठते हुए सवालों का विचारों की श्रृंखला को जारी रखने की आवश्यकता बताई। उन्होंने अपने व्याख्यान में इस तथ्य को उजागर किया कि धर्म का इतिहास विज्ञान के इतिहास से निश्चय ही पुराना है। धर्म के भी सार्थक व्याख्या के साथ समझ विकसित करना इतना ही आवश्यक है जितना विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझना जरूरी है। धर्म और विज्ञान दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का विकास सत्य की खोज के साथ प्रारंभ हुआ है।अन्तर धार्मिक विवादों को शास्त्रार्थ के द्वारा निष्पादित किया जाना चाहिए। जहां विज्ञान की सीमा समाप्त होती है वहां से धर्म प्रारंभ होता है। इस अवसर पर लगभग दो सौ व्यक्तियों ने प्रतिभागिता निभाई। तनवीर अख्तर ने संगोष्ठी का सफल संचालन किया।
इस संगोष्ठी में डॉ मृदुला प्रकाश, श्यामानंद चौधरी, डॉ राकेश रंजन, अवधेश के नारायण सहित कई गणमान्य लोगों ने सार्थक प्रश्न पूछा जिससे ऐसी संगोष्ठी की निरंतरता की आवश्यकता महसूस की गई।