पटना 04 फ़रवरी 2025

एंटोन चेखोव द्वारा 1889 में लिखी कहानी ‘द बेट’ में मानवीयता का तत्व बेहद गहरा है। बहुत त्रासद स्थितियों में भी सूरज की रोशनी और सुंदरता के शाश्वत गुण को इसमें देखा जा सकता है। इसमें अतिसूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं, जीवन की छोटी-छोटी बातों, निर्मम सच्चाई, जीवन में आस्था और वेदना का सहज चित्रण है। जबकि बाजी मृत्युदंड और आजीवन कारावास के बीच दिलचस्प कथा-विन्यास, कहन व बहस के साथ आगे बढ़ता है और जीवन के अर्थ की बात करता है। इस क्रम में यह मानव स्वभाव, जीवन-मूल्य और ज्ञान की खोज जैसे विषयों का अन्वेषण करता है। कहानी में अमीर व्यक्ति और वकील के माध्यम से भौतिक धन और आध्यात्मिकता या बौद्धिक संतोष का विरोधाभास दिखाया गया है। अमीर व्यवसायी का मानना है कि जीवन किसी भी विचार से अधिक मूल्यवान है। इसलिए वह भौतिक सुख-सुविधाओं को महत्व देता है। जबकि वकील, अपने वर्षों के एकांतवास के दौरान धन और मानव इच्छाओं की व्यर्थता को समझता है। कहानीकार का सुझाव है कि ज्ञान की खोज और आत्म-चिंतन, भौतिकवाद को अस्वीकार करने और जीवन के गहन सत्य को समझने की दिशा में ले जा सकते हैं, हालांकि यह अहसास निराशा भी ला सकता है। यह समाज के मूल्यों की आलोचना करती है और यह सवाल भी उठाती है कि क्या जीवन का वास्तविक अर्थ धन है?

मंच पर
श्री गोयल : सतीश तिवारी, श्रीमती गोयल : चाहत जायसवाल,
वकील सक्सेना : अमर सिंह, पत्रकार तनेजा : कुमार अभिनव / प्रत्यूष वर्सने, रामसेवक : दिलीप श्रीवास्तव

नेपथ्य
प्रकाश : टोनी सिंह,
संगीत एवं ध्वनि प्रभाव : अमर सिंह,
वेशभूषा हीर,
मंच विन्यास : कुमार अभिनव/सतीश/अमर/दिलीप,
सहायक निर्देशक : अमर सिंह
कहानी: एंटोन चेखव
नाट्य रूपांतरण: अविनाश चन्द्र मिश्र
परिकल्पना व निर्देशन : प्रवीण शेखर

इस अवसर पर

दो नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति की गई, कला जागरण की प्रस्तुति “दो कलाकार” लेखक : भगवती चरण वर्मा, निर्देशक : प्रिंस राज
दूसरी प्रस्तुति दी स्ट्रगलर का नाटक “नहीं कबूल” लेखक : बृजेश शर्मा, निर्देशक : रोशन कुमार

कल पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव में दो मंचीय प्रस्तुति होगी, “कबीर खड़ा बाजार में” और “बड़े भाई साहब”

दूसरी मंचीय प्रस्तुति उड़िया नाटक “रीबोती-सीयोबोती और ईबोती

कथा: फकीर मोहन सेनापति
नाटककार : सुबोध पटनायक,
परिकल्पना व निर्देशनः सुजाता प्रियम्बदा।

कथासार
उड़िया में बोती का अर्थ लैंप (दीपक) होता है। सीयोबोती का अर्थ है वह दीपक, ईबोती का अर्थ है ‘यह दीपक। नाटक की शुरुआत दादी माँ द्वारा अतीत और वर्तमान, परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष को दर्शाने के लिए रीबोती पर चिल्लाने से होती है। हाल तक उड़ीसा में यह अंधविश्वास था कि यदि कोई लड़की अक्षर पढ़ना शुरू कर देगी, तो गाँव में हैजा महामारी फैल जाएगी। यह महामारी कुछ और नहीं, बल्कि गाँव की देवी का प्रकोप है। इस कहानी में संयोग से रीबोती ने पढ़ना शुरू किया और उसके माता-पिता, शिक्षक और दादी माँ की मृत्यु हो जाती है। यह उड़िया साहित्य में प्रकाशित पहली कहानी मानी जाती है। मशहूर कहानीकार फकीर मोहन सेनापति ने अपने समय में इस कहानी के जरिए जबरदस्त बहस छेड़ दी थी। नाटक का विषय अतीत की महिलाओं के जीवन की तुलना वर्तमान से करना है। इसलिए इसमें भविष्य की संभावनाओं का अनुमान लगाने का दृष्टिकोण भी है। एक मंच कलाकार बनने की उसकी इच्छा को परिवार नजर अंदाज कर देता है। रीबोती की मूल कहानी की तरह, एक आधुनिक लड़की को परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाली दादी के खिलाफ लड़ने के लिए माता-पिता और एक शिक्षक या मार्गदर्शक के समर्थन की आवश्यकता होती है। सीयोबोती वर्तमान समय की रीबोती का नाम है और यह नाटक ईबोती की एक प्रगतिशील छवि की खोज करने का सुझाव देता है।

मंच पर “सुजाता प्रियम्बदा”

नेपथ्य
सहयोग : राखल माईती

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